ऑस्ट्रेलिया के जंगल में लगी आग
ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया तट से लगे मल्लकुटा शहर के आसपास के जंगलो में लगी आग पूरे महाद्वीप के पर्यावरण के लिए चिंता जनक विष्य बन गई है।
इस आग के बाद जंगल के आस पास के सभी शहरों में State Emergency लागू कर दी गई है। आग के कारण निकलने वाला धुआँ न्यू साउथ वेल्स, साउथ तटीय सिडनी, गिप्पसलैंड तथा कैनबरा के वातावरण को प्रदूषित कर रहा है। धुंए से दमघुटने की समस्या होने से कई स्थानीय निवासी बड़ी संख्या में पलायन कर दूर चले गए है।
आग के कारण अब तक 50 मिलियन हैक्टर क्षेत्र जल चुका है तथा अब तक 19 लोगो की मृत्यु के साथ हजारों जानवर जिनमे दुर्लभ प्रजातियां भी थी जल चुकी है।
घटना के बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री 'स्कॉट मॉरिसन' ने अपनी विदेशी यात्रओं को स्थगित कर दिया। जिसमे वह 13 से 16 जनवरी तक भारत दौरे फिर चीन के दौरे पर जाने वाले थे।साथ ही ऑस्ट्रेलिया में उनके खिलाफ लोगो का आक्रोश चरम सीमा पर पहुँच चुका है। कई क्षेत्रों में लोगो ने उनके अपने यहाँ न आने के आदेश दिए।
गौरतलब है कि इससे पहले सिडनी के जंगलों में भी आग लगी थी। एक वर्ष के भीतर इस प्रकार की घटना दुबारा होना सरकार की राजनीतिक विफलता को भी दर्शाता है। विश्व का सबसे बड़ा प्रवाल द्वीप (The Great Barrier Reef) भी इसी महाद्वीप पर है,जो जलवायु परिवर्तन का लगातार शिकार हो रहा है।
ऑस्ट्रेलिया को "प्यासी भूमि का देश" भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए महाद्वीप के चारो तरफ पानी होने के बावजूद यहां वर्षा औसात से कम होती है।पश्चिम तटों पर रेगिस्तान का महाजाल फैला है। वनों मे सूखे वृक्षों की अधिकता होने के कारण बढ़ते तापमान से आग लगना स्वाभाविक हो जाता है।
ऑस्ट्रेलिया के वनों में लगने वाली आग में यूकैलीप्टिस वृक्षों की संख्या अधिक है। food and agriculture organization (FAO) ने पिछले वर्ष एक रिपोर्ट जारी कर यूकैलीप्टिस वृक्ष को "Harmfull of Environment" की संज्ञा दी थी, ऐसा इसलिए यह वृक्षों भूजल को ज्यादा सोखतें है, इनकी आयु लंबी होती है साथ ही इनसे एक प्रकार का तेल निकलता जो ज्वलनशील प्रकृति रखता है। इनके होने के कारण मृदा अपरदन दर तेजी से बढ़ रही है जिसके परिणामस्वरूप बाकी वनस्पति भी प्रभावित हो रही है।UNEP के आँकड़ों के अनुसार विश्व भर में यूकैलीप्टिस से 80% से अधिक लकड़ी उत्पादन किया जाता है।
इसलिए जिन देशों में भूमिगत जल औसतन 40% से नीचे है वहाँ यूकैलीप्टिस की खेती करना अन्य वनस्पति के लिए हानिकारक है।
इस आग के बाद जंगल के आस पास के सभी शहरों में State Emergency लागू कर दी गई है। आग के कारण निकलने वाला धुआँ न्यू साउथ वेल्स, साउथ तटीय सिडनी, गिप्पसलैंड तथा कैनबरा के वातावरण को प्रदूषित कर रहा है। धुंए से दमघुटने की समस्या होने से कई स्थानीय निवासी बड़ी संख्या में पलायन कर दूर चले गए है।
आग के कारण अब तक 50 मिलियन हैक्टर क्षेत्र जल चुका है तथा अब तक 19 लोगो की मृत्यु के साथ हजारों जानवर जिनमे दुर्लभ प्रजातियां भी थी जल चुकी है।
घटना के बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री 'स्कॉट मॉरिसन' ने अपनी विदेशी यात्रओं को स्थगित कर दिया। जिसमे वह 13 से 16 जनवरी तक भारत दौरे फिर चीन के दौरे पर जाने वाले थे।साथ ही ऑस्ट्रेलिया में उनके खिलाफ लोगो का आक्रोश चरम सीमा पर पहुँच चुका है। कई क्षेत्रों में लोगो ने उनके अपने यहाँ न आने के आदेश दिए।
गौरतलब है कि इससे पहले सिडनी के जंगलों में भी आग लगी थी। एक वर्ष के भीतर इस प्रकार की घटना दुबारा होना सरकार की राजनीतिक विफलता को भी दर्शाता है। विश्व का सबसे बड़ा प्रवाल द्वीप (The Great Barrier Reef) भी इसी महाद्वीप पर है,जो जलवायु परिवर्तन का लगातार शिकार हो रहा है।
ऑस्ट्रेलिया को "प्यासी भूमि का देश" भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए महाद्वीप के चारो तरफ पानी होने के बावजूद यहां वर्षा औसात से कम होती है।पश्चिम तटों पर रेगिस्तान का महाजाल फैला है। वनों मे सूखे वृक्षों की अधिकता होने के कारण बढ़ते तापमान से आग लगना स्वाभाविक हो जाता है।
ऑस्ट्रेलिया के वनों में लगने वाली आग में यूकैलीप्टिस वृक्षों की संख्या अधिक है। food and agriculture organization (FAO) ने पिछले वर्ष एक रिपोर्ट जारी कर यूकैलीप्टिस वृक्ष को "Harmfull of Environment" की संज्ञा दी थी, ऐसा इसलिए यह वृक्षों भूजल को ज्यादा सोखतें है, इनकी आयु लंबी होती है साथ ही इनसे एक प्रकार का तेल निकलता जो ज्वलनशील प्रकृति रखता है। इनके होने के कारण मृदा अपरदन दर तेजी से बढ़ रही है जिसके परिणामस्वरूप बाकी वनस्पति भी प्रभावित हो रही है।UNEP के आँकड़ों के अनुसार विश्व भर में यूकैलीप्टिस से 80% से अधिक लकड़ी उत्पादन किया जाता है।
इसलिए जिन देशों में भूमिगत जल औसतन 40% से नीचे है वहाँ यूकैलीप्टिस की खेती करना अन्य वनस्पति के लिए हानिकारक है।
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